Skip to main content

हर घर में माँ की पूजा हो, ऐसा संकल्‍प उठाता हूँ...

एक बार इस कविता को💘दिल से पढ़िये शब्द-शब्द में गहराई है...

जब आंख खुली तो अम्‍मा की
गोदी का एक सहारा था,
उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको
भूमण्‍डल से प्‍यारा था।

उसके चेहरे की झलक देख
चेहरा फूलों सा खिलता था,
उसके स्‍तन की एक बूंद से
मुझको जीवन मिलता था।

हाथों से बालों को नोंचा
पैरों से खूब प्रहार किया,
फिर भी उस मां ने पुचकारा
हमको जी भर के प्‍यार किया।

मैं उसका राजा बेटा था
वो आंख का तारा कहती थी,
मैं बनूं बुढापे में उसका
बस एक सहारा कहती थी।

उंगली को पकड. चलाया था
पढने विद्यालय भेजा था,
मेरी नादानी को भी निज
अन्‍तर में सदा सहेजा था।

मेरे सारे प्रश्‍नों का वो
फौरन जवाब बन जाती थी,
मेरी राहों के कांटे चुन
वो खुद गुलाब बन जाती थी।

मैं बडा हुआ तो कॉलेज से
इक रोग प्‍यार का ले आया,
जिस दिल में मां की मूरत थी
वो रामकली को दे आया।

शादी की पति से बाप बना
अपने रिश्‍तों में झूल गया,
अब करवाचौथ मनाता हूं
मां की ममता को भूल गया।

हम भूल गये उसकी ममता
मेरे जीवन की थाती थी,
हम भूल गये अपना जीवन
वो अमृत वाली छाती थी।

हम भूल गये वो खुद भूखी
रह करके हमें खिलाती थी,
हमको सूखा बिस्‍तर देकर
खुद गीले में सो जाती थी।

हम भूल गये उसने ही
होठों को भाषा सिखलायी थी,
मेरी नीदों के लिए रात भर
उसने लोरी गायी थी।

हम भूल गये हर गलती पर
उसने डांटा समझाया था,
बच जाउं बुरी नजर से
काला टीका सदा लगाया था।

हम बडे हुए तो ममता वाले
सारे बन्‍धन तोड. आए,
बंगले में कुत्‍ते पाल लिए
मां को वृद्धाश्रम छोड आए।

उसके सपनों का महल गिरा कर
कंकर-कंकर बीन लिए,
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के
आभूषण तक छीन लिए।

हम मां को घर के बंटवारे की
अभिलाषा तक ले आए,
उसको पावन मंदिर से
गाली की भाषा तक ले आए।

मां की ममता को देख मौत भी
आगे से हट जाती है,
गर मां अपमानित होती
धरती की छाती फट जाती है।

घर को पूरा जीवन देकर
बेचारी मां क्‍या पाती है,
रूखा सूखा खा लेती है
पानी पीकर सो जाती है।

जो मां जैसी देवी घर के
मंदिर में नहीं रख सकते हैं,
वो लाखों पुण्‍य भले कर लें
इंसान नहीं बन सकते हैं।

मां जिसको भी जल दे दे
वो पौधा संदल बन जाता है,
मां के चरणों को छूकर पानी
गंगाजल बन जाता है।

मां के आंचल ने युगों-युगों से
भगवानों को पाला है,
मां के चरणों में जन्‍नत है
गिरिजाघर और शिवाला है।

हर घर में मां की पूजा हो
ऐसा संकल्‍प उठाता हूं,
मैं दुनियां की हर मां के
चरणों में ये शीश झुकाता हूं।
C&P

जितना आप अपनी माँ को प्यार करते हैं उतना शेयर करें।

santoshktn.blogspot.com by SK BHARTI

Comments

Post a Comment

Contact us

Name

Email *

Message *

Like us on Facebook

Popular posts from this blog

बाल मनोविज्ञान(UPTET& CTET)

बाल मनोविज्ञान(UPTET& CTET) 🔹"तुम मुझे एक बालक दे दो मै उसे ऐसा बनाऊँगा जैसा तुम चाहते हो" ये कथन किसका है- *जे.बी.वाटसन का* 🔹किशोरावस्था को तुफानी अवस्था किसने कहा है- *स्टेनलेहाल ने* 🔹किशोरावस्था, शैशवावस्था की पुनरावृत्ति है, किसका कथन है- *रॉस का* 🔹गेस्टाल्टवाद के संस्थापक कौन है- *वार्दीमर* 🔹दूध के दांतों की कितनी संख्या होती है- *20* 🔹उत्तरप्रदेश बेसिक शिक्षा परियोजना कब से प्रभावी है- *5 अक्टूवर 1981 से* 🔹मनुष्य को जो कुछ भी बनना होता है, वह 4- 5 वर्षो में बन जाता है, किसने कहा है— *फ़्रायड* 🔹जीवन के प्रथम 2 वर्षों में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है — *स्टैंग* 🔹किस अवस्था को मानव जीवन का स्वर्णिम समय कहा गया है- *बाल्यावस्था को* 🔹बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल है, किसका कथन है - *कोल एड बुस का* 🔹बालक के हाथ-पैर और नेत्र उसके प्रारम्भिक शिक्षक होते है " कथन है? *रुसो का* 🔹" बीसवी सदी को 'बालक की शताब्दी " किसने कहा है-  *क्रो एवं क्रो ने* 🔸सीखने का अनोखाकाल- *शैशवावस्था को* 🔸जीवन का अनोखाकाल- *बाल्...

"मानवता ही श्रेष्ठ धर्म हैं"

*आजकल शादी-ब्याह का मौसम जोरों पर चल रहा हैं ।* कहते हैं शादी का लड्डू ऐसा हैं जो खाये वो पछताए जो न खाये वो भी पछताए ।कुछ बुद्धिजीवी और विद्वान सलाह देते हैं कि लड्डू खाकर ही पछताना चाहिए । लेकिन मेरी सलाह हैं कि शादी के लड्डू को पछताने वाला कतई भी नही बनाये इतनी काबिलियत खुद में तैयार कर ले कि जीवन-सफर ख़ुशी-ख़ुशी व्यतीत हो ।नींद से सुबह जैसे ही मेरी आँखे खुली पड़ोस से मधुर संगीत आवाज़ आया गीत चल रहा था - बाबुल की दुआये लेती जा जा तुझको .....** मुझे ख्याल आया कि इतना पुराना गीत, वह भी रुला देने वाला, इतने सालों बाद ? अब फिल्मों में नए गीत क्यों नही बनते ? बनते भी हैं तो बहुत ही कम ?**क्या अब फिल्मों में व्यवस्थित शादियाँ नही दिखाई जाती ?**आधुनिक युग में युवां-युवतियां शायद अब प्रेम-विवाह ज्यादा पसन्द करती हैं इसलिए माता-पिता भी शार्टकट पसन्द करते हुए विवाह कर देते हैं । इसलिए बिदाई के गीत नही के बराबर बन रहे हैं ।* *अंत में ! मैं तो चाहता हूँ कि बिदाई गीत भी बने , प्रेम- विवाह ( अंतर्जातीय विवाह ) भी हो ! प्रेमी-युगल को मनपसन्द हमसफ़र भी मिले लेकिन माँ-बाप की इज़ाजत से ।**और हर म...

भारत की घटिया राजनीति by SK BHARTI

क्या भारत जैसी घटिया राजनीति और किसी देश मे भी होती होगी ;क्योंकि इसी घटिया राजनीति के चलते भारत आज भी विकासशील देशो की लाइन मे खड़ा है? ????  भारत मे धर्म ,जाति और स्थानीयता के आधार पर राजनीति किया जाता है। तथा इसी कारण देशभर के युवाओं को बेरोजगारी का सामना  करना पड़ रहा है। (santoshktn.blogspot.com by SK BHARTI) भारत की राजनीति बहुत घटिया है, यहाँ के नेता सिर्फ अपने बारे मे सोचते है ,अगर आज अपने बारे मे ना सोचे होते तो शायद पाकिस्तान नक्शे मे ना होता । भारत 50 साल से एक अँगुल भर के देश से ना जूझता  ,हर बार सैनिक और बेचारी निर्दोष जनता ना मारी जाती ।अपने देश मे पाकिस्तान के नारे ना लगते  ,चीन  10 किलोमीटर अंदर नही आ जाता ,यही बात सिद्ध करता है कि भारत के नेता सिर्फ भौकते है ,भारत की जनता सोती है ,"राजनीति के नाम पे सिर्फ धर्म के ठेकेदार जो आपस मे तु तु मै मै करते है अगर इतना देश के लिए लड़े तो कुछ देश सुधर सकता है " भारतीय नेताओं आपकी राजनीति सब से घटिया है ।   राजनीति में सक्रिय लोगों तमाम नेताओं पर हम नजर डालें तो हमें यह देखकर दु:ख होगा कि ,...