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WHAT IS LOVE¿¿¿ True love isn't about passion or lust or attraction or common interests and personalities. It's something altogether different. It's about learning to complement each other, learning to grow with each other. It's about doing love-things, even when you don't feel like it, even when life drives you to insanity, even if you think you've lost love. It's about commitment and perseverance and thinking and feeling and happiness. -- TimKing (from "Love Through the Eyes of an Idiot")



मेरे देश के लिये मेरी इच्छा

मेरी प्रबलतम इच्छा है कि मेरा देश एक महान , विकसित एवम् सर्व संपन्न राष्ट्र बने। भारत को फिर से "सोने की चिड़िया" की उपाधि मिले। भारत अभी भी  विकास के मार्ग पर अग्रसर है । मैं चाहता हूँ कि भारत शीघ्र ही अपनी मंजिल प्राप्त करे। भ्रष्टाचार एक जवलंत समस्या है इसका जड़ से उन्मूलन हो। 

गरीबी और बेरोजगारी के कारण भारत की जनता का औसत जीवन स्तर बहुत निम्न है। मेरी ये ख्वाहिश है क़ि सभी लोग संपन्न हो। आज हमारे कई गाँवो में मूल सुबिधायें जैसे बिजली ,पानी आदि उपलब्ध नहीं है। मैं चाहता हूँ क़ि गाँव और शहर सभी का विकास हो। भारत में कुछ सामाजिक कुरीतियाँ जैसे दहेज़ प्रथा बाल विवाह बाल मजदूरी ,इन्हें दूर किया जाए।सभी को चिकित्सा की सुबिधायें उपलब्ध हो।

मेरा भारत महान हो ,यही मेरी हार्दिक कामना है।


भारत मेँ ग्रामीण जीवन 

भारतवर्ष प्रधानतः गांवों का देश है। यहाँ की दो-तिहाई से अधिक जनसँख्या गांवों में रहती है। आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है। इसलिए गांवों के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है, ऐसा सोंचा भी नहीं जा सकता। गांधी जी ने कहा था- ‘असली भारत गांवों में बसता है’। भारतीय ग्राम्य-जीवन सादगी और प्राकृतिक शोभा का भण्डार है।

भारतीय गांव के निवासियों का आय का मुख्य साधन कृषि है। कुछ लोग पशु-पालन और कुछ कुटीर उद्योग से अपनी जीविका कमाते हैँ। कठोर परिश्रम, सरल स्वभाव और उदार हृदय ग्रामीण जीवन की विशेषताएं हैं। भारतीय किसान सुबह से शाम तक खेतों मेँ कड़ी मेहनत करते हैँ। गांव की प्राकृतिक छटा मन मोह लेती है। दूर-दूर तक लहलहाते हुए हरे-भरे खेत और चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल और उनकी फैली हुई ख़ुशबू मदहोश कर देती है। चारों तरफ चहचहाते हुए पक्षी मन मोह लेते हैं। सादगी और प्राकृतिक शोभा के भण्डार इन भारतीय गांवों की भी अपनी कथा है। 

आज़ादी के बाद, खेती के विकास के साथ-साथ ग्राम-विकास कि गति भी बढ़ी। आज भारत के अधिकाँश गांवों में पक्के मकान पाये जाते हैं। लगभग सभी किसानों के पास अपने हल और बैल हैं। बहुतों के पास ट्रेक्टर आदि भी पाये जाते हैं। किसानों कि आय भी बढ़ी है। ग्राम-सुधार की दृष्टि से शिक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। आज अधिकाँश गांवों में प्राथमिक पाठशालाएँ हैं। जहाँ नहीं हैं, वहाँ भी पाठशाला खोलने के प्रयत्न चल रहे हैं।

भारतीय किसानों की दयनीय स्थिति का एक प्रमुख कारण ऋण है। सेठ-साहूकार थोडा सा क़र्ज़ किसान को देकर उसे अपनी फसल बहुत कम दाम में बेचने को मजबूर कर देते हैं। इसलिए गांवों में बैंक खोले जा रहे हैं जो मामूली ब्याज पर किसानों को ऋण देते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण व्यक्तियों को विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हथकरघा और हस्त-शिल्प की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विचार यह है कि छोटे उद्योगों व कुटीर उद्योगों की स्थापना से किसानों को लाभ हो। 

पहले गांवों में यातायात के साधन बहुत कम थे। गांव से पक्की सड़क 15-20 किलोमीटर दूर तक हुआ करती थी। कहीं-कहीं रेल पकड़ने के लिए ग्रामीणों को 50-60 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था। अब धीरे-धीरे यातायात के साधनो का विकास किया जा रहा है। फिर भी ग्राम-सुधार की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अभी भी अधिकाँश भारतीय किसान निरक्षर हैं। भारतीय गांवों में उद्योग धंधों का विकास अधिक नहीं हो सका है। ग्राम-पंचायतों और न्याय-पंचायतों को धीरे-धीरे अधिक अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं। इसलिए यह सोंचना भूल होगी कि जो कुछ किया जा चुका है, वह बहुत है। वास्तव में इस दिशा में जितना कुछ किया जाये, कम है। 

हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि गांवों के विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। यहाँ तक कि बड़े उद्योगों का माल भी तभी बिकेगा जब किसान के पास पैसा होगा। थोड़ी सी सफाई या कुछ सुविधाएँ प्रदान कर देने मात्र से गांवों का उद्धार नहीं हो सकेगा। भारतीय गांवों की समस्याओं पर पूरा-पूरा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।


SANGHARSH

kisi bhi tareh ki badhao ko door karke aage badne baale log unki tulna me adhik surekhshit hote hain, jinhone kavi unka samna hee ni kiya,

pretyek veyakti ko kavi na kavi dikkato ka samna karna hee padta hai, is karan kai bar hum mayus ho jate hain, tab hume yehi sochna chahiye ki aisi parishtithiyan sabke samne aati hain, jinka datker samna karne wala hee aakhir kar safal hota hai, tabhi to kaha gaya hai ki sangharsh hee jivan hai, jindegi me kavi jeet ki khushiyan milti hain, to kavi har ka gam, ab yeh hum per nirbher karta hai ki ham har ka samna kaise karte hain, kyonki ye to taye hai ki har ke baad jeet bina sangharsh ke naseeb nahi hoti.

kisi kaksha me jeev vigyan ke pradhyapak chhatro ko is baat ki jankari de rahe the ki sundi kis prekar titli me badal jati hai, unhone bataya ki kuch hee der me titli apne khol se bahar nikelne ki koshish karegi. Unhone chhatro ko aagah kiya ki khol se bahar nikelne me ve titli ki kisi bhi tareh ki madad na kare aur phir veh kaksh se bahar chale gaye.

Jab titli khol se bahar nikelne ki koshish karne lagi to kuch der tak to chhatr chup chap dekhte rahe, per unhe daya aagayi aur ve titli ko bahar niklne me madad karne lage. Aisa karne se titli bina koshish ke bahar to aagayi per kuch hee der me tadap tadap ke mar gayi.

Vapesh lout ker shikshak ne jab yeh najara dekha to unhone chhatro ko samjhate huye kaha ki titli ko khol se bahar aane ke liye sangharsh karna padta hai jisse uske pankh majbut hote hain, yehi prekarti ka niyem hai. Aise me titli ki madad karke chhatro ne use sangharsh karne ka moka nahi diya is karan uski mirtyu ho gayi.

Zindegi me safalta ka bhi yehi fourmula hai. Yad rakhiye ki jeevan me koi bhi cheez bina mehanat bina sangharsh ke nahi milti . Sangharsh se hee majbuti milti hai jo aakhir kar jeet me badal jati hai  ..


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