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सभी ओबीसी भाई ध्यान दें और समझें और जरूर सभी पढ़ें

सभी ओबीसी भाई ध्यान दें और समझें और जरूर सभी पढ़ें

जो ओबीसी, एससी, एसटी का बहुजन समाज के लोग इस घमंड मे जी रहे हैं कि हमारी आबादी ज्यादा है, और इसे कोई नही मिटा सकता। मैं उन्हें ये कहना चाहूँगा की सिर्फ दो मिनट का समय निकाल कर मेरे इस पोस्ट को पढ़ें, और इसको अपनी आम ज़िन्दगी में अमल करें।

आखिर न्यायालय से ओबीसी क्यों मिट गया ? "संविधान " जो बाबा साहब अंबेडकर ने अपने बहुजनो के लिए बनाया आज उसकी हिफाजत के लिए आज वहाँ एक भी"बहुजन" नहीं बचा l
"आरक्षण " जिसका विवरण संविधान में है, जहां पर राज बहुजन समाज का होना चाहिए आज उन जगहो को प्राइवेट कंपनियो को बेचा जा चुका है, और वहाँ आज एक भी बहुजन नहीं बचा l "सचिवालय " जहां डा लोहिया ने ओबीसी, एससी, एसटी के हकदारी के लिए जी जान लगा दी आज वॅहा एक भी सचिव"ओबीसी, एससी, एसटी" नही है।

"खेती मे " में 40 साल पहले तक 90% लोग करना चाहते थे, आज सिर्फ 10% बचे हैं l क्यों कि खेती पर निर्भर रहने वाली बड़ी आबादी ओबीसी वर्ग था!! "मिडिया जगत " में जातिवाद का हालत यह है कि ओबीसी- एससी- एसटी को घुसने तक नही दिया जा रहा है!! "देश" में बहुजनो की आबादी 85% है मगर देश के कैबिनेट मंत्रालय मे 1% भी नही है!! "न्यायालय " मे 90% केस ओबीसी- एससी- एसटी के है मगर 1% वकील और जज ओबीसी, एससी, एसटी के नही है!! मित्रों, विश्वविद्यालय, विद्यालय, मे 85% बच्चे ओबीसी- एससी- एसटी के है मगर 1% डीन, वीसी, प्रोफेसर, लेक्चरर, ओबीसी- एससी- एसटी के नही है!! देश के इकोनॉमी को 85% टैक्स आप ओबीसी- एससी- एसटी देते हो मगर मजा 3% आबादी वाला धूर्त और चालाक उठा रहा है!! आपके पैसे को लूटकर देश के चंद लोग खा रहे है सरकार मध्यस्थता कर रही है!! हमेशा हिंदू मुस्लिम के नाम पर वोट की की भीख मांगने वाले जब ओबीसी- एससी- एसटी के हक और प्रतिनिधित्व की बात करो तो आप पर जातिवाद का आरोप लगाता है!!
29 राज्य है भारत के और ओबीसी- एससी- एसटी की आबादी के 25 राज्यो मे 85% से उपर है मगर केवल 5 सीएम ओबीसी- एससी- एसटी है!! और "बहुजनो" का एक मात्र देश भारत ही अब "बहुजनो" के लिए सुरक्षित नहीं रहा l

मैंने 10 लोगों को जो कि ओबीसी- एससी- एसटी हैं, उनसे पूछा कि किस जाति के हो ?सभी ने अलग - अलग जवाब दिया……किसी ने कहा यादव …किसी ने कहा पटेल …किसी ने कहा कोईरी …किसी ने कोहार कहा …तो किसी ने पाल …… सब लोगों ने अलग - अलग बताया lलेकिन मैंने 10 ब्राह्मणो से पूछा कि कौन सी जाति के हो ?सभी का एक जवाब आया "ब्राह्मण "मुझे बड़ा अजीब लगा, मैंने फिर से पूछा, फिर वही जवाब आया "ब्राह्मण "तब मुझे बहुत अफसोस हुआ, और लगा हम कितने अलग और वो कितने एक भारत ओबीसी- एससी- एसटी का है और हम सब भारतीय और भारत के हर संसाधन पर हमारा हक होना चाहिए!!

दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में एक ओबीसी भाई ने जनहित याचिका डाली थी कि मंदिर मे एक ही जाति का मठाधीश और पूजारी क्यो होता है l सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका रिजेक्ट करते हुये कहा कि "वेद " और "पुराण " के हिसाब से मंदिर पर हक ब्राह्मण का ही है क्योकि फैसला सुनाने वाला जज ब्राह्मण ही था!! यदि योग्यता और बराबरी का हक वेद और पुराण के खिलाफ है, माननीय सुप्रीम कोर्ट के हिसाब से भारत मे बराबरी और संविधान की बात हराम है!! क्या नेता इस पर कुछ टिप्पणी देंगे ?
अजीब कानून है भैया अपने पैसे के लिए देश लाइन मे लगा है!! जनता का पैसा खाने वाला माल्या पंच सितारा मे पड़ा है…ये जो नीचे लिखा है वो कोई मज़ाक नहीं है, कल ये आपके शहर में भी हो सकता है l अगर ये किसी ओबीसी, एससी, एसटी, किसान लेकर भागा होता तो इन जातिवादी मिडिया वाले आपको पकड़कर तिहाड़ मे डाल दिए होते!! कुछ दिन पहले जी न्यूज के सुधीर चौधरी ने सपा के सुनील कुमार सर से तल्ख़ मुद्रा में पूछा था कि अगर देश में ब्राह्मण ज्यादा हर पद पर हो जायेंगें तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ेगा ?इसका एक प्रायोगिक उत्तर कल के एक वाकये ने दिया l
बीजेपी के शासित गुजरात मे "दलित " को इसलिए गाड़ी मे बाँधकर मारा गया कि वह उनके मरे हुए गाय को नही उठाया!! और उन्होंने उनके पेशाब को पीने से मना कर दिया!! मगर उन पर इस अत्याचार की कारवाई तक नही हुई वो फिर अपना अत्याचार फैला रहे है क्योकि गुंडा भी वही हैथाने का पुलिसथाने का दलाल एसपी-कलेक्टर आगे बढो तो वकील और नेता यहाँ तक की जज भी उनके जाति का है!!

आरएसएस का हालत यह है कि जो वोट के लिए हिंदू धर्म का सहारा लेता है लेकिन जब देश के 85% हिंदुओ ने आरक्षण के लिए आंदोलन किया तो उन्हे गोलियो से भून दिया!! और जब भारत को आजादी मिली तो तिरंगे को जलाया, तिरंगे से उनकी नफरत और जय हिन्द पर आपत्ति इस सबका कारण थी l पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया लेकिन वो सब एक जाति के थे प्रशासन ने जातिवाद दिखाया उनको छोड़ दिया गया   lध्यान रहे वो अनपढ़ लोग नहीं, वो पैदाइशी चालाक थे और आजभी है l

*एकता में ही ताक़त है*

इसको समझिये आप लोग अभी जब यूपी में 56 SDM कि फ़र्ज़ी खबर मीडिया और सोशलमीडिया में उड़ी तो विशेष जाति के लोग बौखला गए थे। चूँकि मामला यादवों से जुड़ा था, इसलिए अन्य जातियां भी हर तरीके से इनके साथ थी। क्योंकि यादव विरोध पर मैंने अब तक सबको एक झन्डे तले पाया है। अब 110 के करीब ब्राह्मण उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में चयनित हुए है। कोई शोर- शराबा नहीं है, सब खामोश है। मतलब ब्राह्मण अधिकारी सर्वमान्य है। अगर यादव बनता है, तो पिछड़े और दलित भी विरोध में आ जाते है। मुझे पिछड़ों और दलितों की स्थिति उस कटी पतंग के माफिक लगती है जिसके पाने के लिए पीछे सब दौड़ते है और नहीं मिलने पर फाड़ देते है। कुछ ऐसी ही स्थिति पिछड़ों की प्रतीत होती है।जब अनिल यादव लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष थे, तब इलाहबाद की सड़कों पर बड़ा हंगामा हुआ था। जुलुस निकाले गए थे, तोड़ फोड़ की गयी थी, और समूचे यादव समुदाय को गालियाँ दी गयी थी। उपद्रवी यहीं नहीं रुके उन्होंने गाय बैल तक को डण्डों से पीटा था, क्योंकि वो यादवों से जुड़े थे। रातो–रात 'लोक सेवा आयोग' को 'यादव सेवा आयोग' लिख दिया गया। अब मिश्रा सचिव है और 110 ब्राह्मण चयनित हुए है। लेकिन आयोग 'ब्राह्मण लोक सेवा आयोग' नहीं हुआ।

मैं कल्पना कर सकता हूँ जब यूपी या बिहार में पहला डीएम बना होगा तब लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही होगी? क्या प्रतिक्रिया रही होगी जब बिहार में लालू ने पिछड़ों और शोषितो का परचम लहराया होगा? या उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह ने समाजवाद का आगाज़ किया होगा?आप आकलन कर सकते है कि चारा घोटाला जगन्नाथ मिश्र के समय शुरू हुआ और लालू यादव पर भी दोष सिद्ध हुआ पर सात समुन्दर पार तक लालू चारा चोर है, जबकि असली चोर जगन्नाथ मिश्रा को कोई जानता तक नहीं। आप दिमाग पर जोर डालेंगे तो इनके षड्यंत्रों को बखूबी समझ जाएंगे। ये वो लोग है जो किसी भी कीमत पर आपको सत्ता के केन्द्र में नहीं देखना चाहते, 'आरक्षण' तो बहाना मात्र है।अगर यादव सत्ता में आये तो सत्ता का 'यादवीकरण' हो जाता है। क्यों जनाब? अस्सी फीसदी ब्राह्मणों को ढो रही संसद का आज तक 'ब्राह्मणीकरण' नहीं हुआ? साठ फीसदी से अधिक ब्राह्मणों को झेल रहे इन आयोगों का 'ब्राह्मणीकरण' क्यों नहीं हुआ आज तक? न्यायालयों में अस्सी फीसदी से अधिक ब्राह्मण होने के बावजूद न्यायालयों का 'ब्राह्मणीकरण' क्यों नहीं हुआ आज तक?जबकि वीरेंदर सिंह के चुनते ही लोकायुक्त का 'यादवीकरण' हो गया था।देश के इन तमाम मन्दिरों का 'ब्राह्मणीकरण' क्यों नहीं हुआ? जहाँ की सदियों से ब्राह्मणों की सौ फीसदी भागीदारी है।मुझे मालूम है कि इसका कोई उत्तर नहीं मिलेगा, पर पिछड़ों को इस साजिश को समझना होगा और अपने हकों के लिए एकजुट होना होगा।किसी ऊंचे पद पर अगर एक यादव के बाद दुसरा यादव आ जाए तो भारत का ब्राह्मणी मिडिया इसे "यादववाद" मान लेता है।

किसी ऊँचे पद पर एक दलित अफसर के बाद दूसरा दलित अफसर आ जाए तो भारत का ब्राह्मणी मीडिया इसे "दलितवाद" घोषित कर देता है। लेकिन अगर एक के बाद एक दर्जन या सैकड़ों ब्राह्मण अफसर भी आ जाएँ तो भारत का ब्राह्मणी मीडिया उसे "ब्राह्मणवाद" नहीं बल्की "मेरिट" मानता है।।यह कड़वा सत्य दवा की तरह लगेगा।ओबीसी के विरोध में हो रहे षडयंत्र कि जानकारी ओबीसी के जागृत लोगों को नहीं हैओबीसी के लोग तो लिखे पढे लोग हैजो ब्राह्मणों नें लिखा वही पढा इसलिए आज उनके हक अधिकार ब्राहमणी तंञ दवारा छिन लिए गयें है, संविधान कहता है कि आरक्षण (प्रतिनिधित्व )जनसंख्या के अनुपात में शासन प्रशासन में भागीदारी है। ब्राह्मण कहते हैं यह खैरात है, ओबीसी के लिखे पढे लोगों नें बाबा साहब दवारा लिखा संविधान ब्राह्मणों कि बातों में आकर पढा ही नहीं, इसलिए आज यह हालात है कि 52% ओबीसी को 27% आरक्षण (प्रतिनिधित्व) है, जबकि यह संविधान के विरोध में है, संविधान कहता है लोकतंत्र में जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व लोकतंत्र का प्राण है। इसलिए भारतीय लोकतंत्र में ओबीसी कि 52% शासन प्रशासन में भागीदारी होनी चाहिए

परन्तु आज आजादी के सत्तर साल बाद ब्राह्मणवादी सरकारों नें इसका non-implementation किया ओर जो हक अधिकार SC/ST को 1932 में ही मिल गये थे वह हक अधिकार ब्राह्मणों नें ओबीसी को 1992 मतलब साठ साल बाद मिले उसमें भी असंवैधानिक क्रिमीलेयर लगा कर ओबीसी के लोगों के साथ षडयंत्र किया और आज ओबीसी का शासन प्रशासन में केवल 5% प्रतिनिधित्व है। आज ओबीसी का grade A & B कि सर्विसेज में सही प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण बडे लेवल पर धिरे धिरे ओबीसी कि समस्याओं का निर्माण राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। यह ओबीसी के लिखे पढे लोगों को समझ नहीं आता है, ब्राह्मणों नें हिन्दुत्व के नाम पर ब्राह्मणों का राज स्थापित किया, ओबीसी को रोज नये नये षडयंत्र करके ओबीसी के लिखे-पढे लोगों को हिन्दू बनाया, और सारे हक अधिकार छीन कर देश की विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मिडिया पर कब्जा किया, और अब कहते हैं, यह हिन्दु धर्म नहीं है परम्परा है।
मतलब यह परम्परा मनुस्मृति अनुसार ब्राह्मण धर्म हैऔर ब्राह्मण धर्म का विधान लागू किया और शुद्रों के सारे हक अधिकार छीने। यह है हकिकत अब ओबीसी के लिखे पढे लोगों से निवेदन है कि वह ब्राह्मणों के दवारा हिन्दू नाम के षडयंत्र से बाहर निकलें ,अपने आसपास नजर दौड़ायें, स्वतंत्र सोच रखकर संविधान में दिये आर्टिकल 340 को समझें , काका कालेलकर कमीशन क्या था वह जाने, काका कालेलकर कमीशन क्यों लागू नहीं हुआ । वह जानें , मंडल कमीशन क्या है वह समझें, मंडल कमीशन क्यों इतने बरसों तक लागू नहीं हुआ ।वह जानने कि कोशिश करें ओबीसी को जब मंडल कमीशन लागू हो रहा था तो उसके विरोध में किन लोगों नें राष्ट्रीय लेवल पर विरोध किया उनको जाने समझें। फिर भले ही भाईचारा निभाना ओबीसी को प्रतिनिधित्व SC/ST कि तरह ही मिला है। वही संविधान है, वही कानून है फिर SC/ST कि जनसंख्या तो 22% हैSC/ST को 22% प्रतिनिधित्व है। परन्तु ओबीसी कि जनसंख्या 52% है, 52% ओबीसी को 52% प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है, उसमें भी षडयंत्र करके असंवैधानिक क्रिमीलेयर लगा दी, वह संविधान के विरोध में है। क्योंकि यह प्रतिनिधित्व का अधिकार मौलिक अधिकार है वह शासन प्रशासन में SC/ST/OBC को सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन कि वजह से मिला है ना कि आर्थिक पिछड़े पन कि वजह से1992 में मंडल कमीशन लागू होने के बाद भी उसका non- implementation किया ओर आज ओबीसी को आज 2016 तक 52% होने के बावजूद 5% ही प्रतिनिधित्व मिला है तो ओबीसीको यह समझना जरूरी है कि शासन प्रशासन किन लोगों के कब्जे में हैकोन लोग ओबीसी के लोगों के हक अधिकार छीन रहा है, इसलिए ओबीसी के लिखे पढे लोगों से निवेदन है कि ब्राह्मणों के हिन्दू नाम के षडयंत्र से निकल कर पढे लिखे बनें। स्वतंत्र सोच विकसित करें व आपकी आनेवाली पिढियो को इस षडयंत्र मे ना झोंके,और उनके हक अधिकार सुरक्षित करने कि लड़ाई लडें।

अतः समस्त ओबीसी भाइयों से निवेदन है कि कम से कम एक हजार लोगों को भेजें शायद किसी जागरूक को समझ आये *ब्राह्मण जज पर रोक** कलकत्ता हाईकोर्ट में ब्रिटिश काल में प्रीवी काउन्सिल हुआ करती थी। अंग्रेजों ने नियम बनाया था कि कोई भी ब्राह्मण प्रीवी काउन्सिल का चेयरमैन नहीं बन सकता। क्यों नहीं हो सकता? अंग्रेजों ने लिखा है कि ब्राह्मणों के पास न्यायिक चरित्र नहीं होता है। न्यायिक चरित्र का मतलब है निष्पक्षता का भाव। अर्थात निष्पक्ष रहकर जब एक न्यायाधीश दोनों पक्षों की दलीलें सुनता है, सभी दस्तावेजों को देख कर कानून और न्याय के सिद्धान्त के अनुसार अपनी मनमानी न करते हुए जो सही है उसे न्याय दे, उसे न्यायिक चरित्र कहते है। ऐसा न्यायिक चरित्र ब्राह्मणों में नहीं है, यह अंग्रेजों का कहना था। आज की तारीख में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के लगभग 600 न्यायाधीश हैं, उनमें 582न्यायाधिशों की सीटें ब्राह्मण तथा ऊँची जाति के लोगों के कब्जे में हैं। जब तक न्यायपालिका को प्रतिनिधिक नहीं बनाया जाता, तब तक हमें न्याय मिलने वाला नहीं है। इसलिए न्यायपालिका को प्रतिनिधिक बनाने की आवश्यकता है।

भारत की न्यायपालिका पर हिन्दुओ का नहीं बल्कि ब्राह्मणों का कब्जा है, और ब्रिटिश लोग कहते थे कि,*"BRAHMINS DON'T HAVE A JUDICIAL CHARACTER"*. *यानी "ब्राह्मण का चरित्र न्यायिक नहीं होता, वो हर फैसला अपने जातिवादी हितों को ध्यानमे रखकर देता है। सुप्रीम कोर्ट में बैठे ब्राह्मण जज हर फैसला OBC, SC, ST, मुसलमान, सिख, ईसाई और बौद्धों के खिलाफ ही देते है।
न्यायाधिशों की नियुक्ति में कोलिजियम का सिद्धान्त दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देशों में नहीं है, वह केवल मात्र भारत वर्ष में ही है। इसका कारण यह है कि अल्पमत वाले ब्राह्मण लोग बहुमत वाले बहुजन लोगों पर अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहते हैं।जो बहुमत है वह अपने हक-अधिकारों के प्रति धीरे-धीरे जागृत हो रहा है, इससे ब्राह्मणों के लिए संकट खड़ा हो रहा है। इस संकट से बचने के लिए न्यायपालिका मे बेठे ब्राह्मण न्यायपालिका का इस्तेमाल एससी एसटी ओबीसी और अल्पसंख्यक के विरुद्ध कर रहे है।

भारतीय हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट मे 80% जज ब्राह्मण जाति से है, और ब्राह्मण कभी न्याय का पर्याय नहीं हो सकता क्योंकि ये उसके DNA मे ही नहीं।

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