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S.K. BHARTI |
सुन ऐ नादाँ, मुझे भी कोई दौलत की कमी नही होती,
अगर मुझको तेरे सम्मान की कोई फिकर नही होती!
गगन को चूम रहा होता, मेरा भी ऊंचा सा बंगला,
लड़ाई जो तेरे हकों की, मैने कभी लड़ी नही होती।
जिये होती मेरी भी औलादें, ऐश और आराम की जिंदगी,
तुम्हारें बच्चो की खुशियों की मैंने, कहानी जो लिखी नही होती!
छपी होती मेरी भी तस्वीरें, कागजों के इन टुकड़ो पर,
तेरी खातिर जो मनुवादियों से, दुश्मनी मैने करी नही होती!
जहां चाहत थी आज़ादी की, बही नदियों से खून की धारा,
कद्र होती आजादी की तुझे, जो बैठे-बैठे न मिली होती!
बड़ा अफसोस है कि मेरा, रह गया अधूरा इक सपना,
जो तुम मेरी औलादों ने मिलकर, मेरे बताये रास्ते पे चले होते!
बाबा साहेब जी ने अंत में बस यही कहा था-शिक्षित बनों, संगठित रहों, संघर्ष करों !
अफ़सोस ये है कि आज हम शिक्षित तो
बन गए, लेकिन संगठित नही हो सकें !
बन गए, लेकिन संगठित नही हो सकें !
"जय भीम"
Santoshktn.blogger.com By SK BHARTI
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