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एक भैंस की आत्मव्यथा...

बोली भैंस गाय से बहना, मुझको भी कुछ सिखलाओ।
क्यों माता माता बोलें नर तुमको, मुझको भी बतलाओ।।

जाति धर्म में पड़कर , जो निशदिन लड़ते रहते हैं।
निज मां का सम्मान नहीं,पर तुमको माता कहते हैं।।

खेल कौन खेला है तुमने, वशीभूत किया है कैसे।
मदिरा के शौकीन पुरुषो ने, तेरा मूत्र पिया है कैसे।।

मेरी समझ से बाहर है सब, कुछ तो मुझको बतलाओ।
कौन सियासत खेली तुमने, आज मुझे भी समझाओ।।

जो गुण तुझमें वो गुण मुझमें, फिर क्यों मेरा सम्मान नहीं।
दूध,दही,घी,चमड़ा सबकुछ, दिया मैने क्या सामान नहीं।।

तेरी हरदम पूजा होती, फल फूल चढ़ाए जाते हैं।
वेद पुराण आदि में, तेरे ही किस्से क्यों पाये जाते हैं।।

तेरे मरने पर भी शहरों में, क्यों कोहराम मचाते हैं।
मेरे मरने पर तो मुझको चील और कौवे ही खाते हैं।।

सारी बुद्धि खोल दी मैंने पर समझ नहीं कुछ आया है।
दूध दिया तुझसे ज्यादा, फिर भी आगे तुझको पाया है।।

#- बोली गाय प्रेम से , फिर सुन लो बहना भैंस कुमारी।
तुमसे कैसी राजनीति, तुम तो हो प्रिय बहन हमारी।।

नवजात बच्चियों को जो पैदा होते ही मार गिराते हैं।
दहेज की खातिर गृह लक्ष्मी को जिंदा लाश बनाते हैं।।

नारी देह को सड़कों पर, जो नोंच-नोंच कर खाते हैं।
अपनी माँ को मॉं नहीं कहते, मुझको मॉं बताते हैं।।

ऐसे झूठे मक्कार और कपूतो की, मैं मॉं कैसे हो सकती हूँ।
इन नर पिशाचों की खातिर,अपना पशुत्व कैसे खो सकती हूँ।।

मेरी प्यारी बहना समझो, ये इनके हथकंडे हैं।
राजनीति को चमकाने के,ये तो सारे फंडे हैं।।

वैसे तो मां कहते मुझको, पर घर में मेरा ठौर नहीं।
दौर बहुत देखे हैं मैंने, पर इससे घटिया दौर नहीं।।

बहना तेरे आगे तो बीन बजाएं, मेरे पिछवाडे देते लाठी।
दूध निकालकर सडक पर छोडें, मैला तक भी मैं खाती ।।

मॉं कहने वालो ने आजतक, कभी मुझको नहीं पाला है।
अपनी मॉं वृद्धाश्रम छोडें, उनके लिए नहीं निवाला है।।

फिरती हूं गली गली आवारा, सबके लाठी डंडे खाती हूँ।
तिल तिल कर मरती रहती हूं, तब भी मॉं कहलाती हूँ।।

Santoshktn.blogger.com By SK BHARTI

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