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Showing posts from July, 2017

एक भैंस की आत्मव्यथा...

बोली भैंस गाय से बहना, मुझको भी कुछ सिखलाओ। क्यों माता माता बोलें नर तुमको, मुझको भी बतलाओ।। जाति धर्म में पड़कर , जो निशदिन लड़ते रहते हैं। निज मां का सम्मान नहीं,पर तुमको माता कहते हैं।। खेल कौन खेला है तुमने, वशीभूत किया है कैसे। मदिरा के शौकीन पुरुषो ने, तेरा मूत्र पिया है कैसे।। मेरी समझ से बाहर है सब, कुछ तो मुझको बतलाओ। कौन सियासत खेली तुमने, आज मुझे भी समझाओ।। जो गुण तुझमें वो गुण मुझमें, फिर क्यों मेरा सम्मान नहीं। दूध,दही,घी,चमड़ा सबकुछ, दिया मैने क्या सामान नहीं।। तेरी हरदम पूजा होती, फल फूल चढ़ाए जाते हैं। वेद पुराण आदि में, तेरे ही किस्से क्यों पाये जाते हैं।। तेरे मरने पर भी शहरों में, क्यों कोहराम मचाते हैं। मेरे मरने पर तो मुझको चील और कौवे ही खाते हैं।। सारी बुद्धि खोल दी मैंने पर समझ नहीं कुछ आया है। दूध दिया तुझसे ज्यादा, फिर भी आगे तुझको पाया है।। #- बोली गाय प्रेम से , फिर सुन लो बहना भैंस कुमारी। तुमसे कैसी राजनीति, तुम तो हो प्रिय बहन हमारी।। नवजात बच्चियों को जो पैदा होते ही मार गिराते हैं। दहेज की खातिर गृह लक्ष्मी को जिंदा...

डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम साहब की चन्द लाईनें...

डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम की चन्द लाईनें जो हमे जीवन में हमेशा याद रखनी चाहिए। और हो सके तो उसे अमल भी करना चाहिये। 1. जिदंगी मे कभी भी किसी को       बेकार मत समझना,क्योक़ि         बंद पडी घडी भी दिन में           दो बार सही समय बताती है। 2. किसी की बुराई तलाश करने       वाले इंसान की मिसाल उस        मक्खी की तरह है जो सारे          खूबसूरत जिस्म को छोडकर            केवल जख्म पर ही बैठती है। 3. टूट जाता है गरीबी मे       वो रिश्ता जो खास होता है,         हजारो यार बनते है           जब पैसा पास होता है। 4. मुस्करा कर देखो तो       सारा जहाॅ रंगीन है,         वर्ना भीगी पलको           से तो आईना भी              धुधंला नजर आता है। 5..जल्द मिलने वाली चीजे       ज्यादा दिन तक नही चलती,         और जो चीजे ज्यादा            दिन तक चलती है              वो जल्दी नही मिलती। 6. बुरे दिनो का एक       अच्छा फायदा          अच्छे-अच्छे दोस्त             परखे जाते है। 7. बीमारी खरगोश की तरह       आती है और कछुए की तरह         जाती है;          ...

मेरे बाबा साहेब कहते हैं...

S.K. BHARTI सुन ऐ नादाँ, मुझे भी कोई दौलत की कमी नही होती, अगर मुझको तेरे सम्मान की कोई फिकर नही होती! गगन को चूम रहा होता, मेरा भी ऊंचा सा बंगला, लड़ाई जो तेरे हकों की, मैने कभी लड़ी नही होती। जिये होती मेरी भी औलादें, ऐश और आराम की जिंदगी, तुम्हारें बच्चो की खुशियों की मैंने, कहानी जो लिखी नही होती! छपी होती मेरी भी तस्वीरें, कागजों के इन टुकड़ो पर, तेरी खातिर जो मनुवादियों से, दुश्मनी मैने करी नही होती! जहां चाहत थी आज़ादी की, बही नदियों से खून की धारा, कद्र होती आजादी की तुझे, जो बैठे-बैठे न मिली होती! बड़ा अफसोस है कि मेरा, रह गया अधूरा इक सपना, जो तुम मेरी औलादों ने मिलकर, मेरे बताये रास्ते पे चले होते! बाबा साहेब जी ने अंत में बस यही कहा था-शिक्षित बनों, संगठित रहों, संघर्ष करों ! अफ़सोस ये है कि आज हम शिक्षित तो बन गए, लेकिन संगठित नही हो सकें !                                "जय भीम" Santoshktn.blogger.com By SK BHARTI

धरती की सुलगती छाती के बैचेन शरारे पूछते हैं ...

धरती की सुलगती छाती के, बैचेन शरारे पूछते हैं ... तुम लोग जिन्हे अपना न सके, वो खून के धारे पूछते हैं... सड़कों की जुबान चिल्लाती है सागर के किनारे पूछते हैं - ये किसका लहू है कौन मरा ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता ये किसका लहू है कौन मरा. ये  जलते हुए घर किसके हैं ये कटते हुए तन किसके है, तकसीम  के अंधे तूफ़ान में लुटते हुए गुलशन किसके हैं, बदबख्त फिजायें किसकी हैं बरबाद नशेमन किसके हैं, कुछ हम भी सुने, हमको भी सुना. ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता ये किसका लहू है कौन मरा. किस काम के हैं ये दीन धरम जो शर्म के दामन चाक करें, किस तरह के हैं ये देश भगत जो बसते घरों  को खाक करें, ये रूहें कैसी रूहें हैं जो धरती को नापाक करें, आँखे तो उठा, नज़रें तो मिला. ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता ये किसका लहू है कौन मरा. जिस राम के नाम पे खून बहे उस राम की इज्जत क्या होगी, जिस दीन के हाथों लाज लूटे उस दीन की कीमत क्या होगी, इन्सान की इस जिल्लत से परे शैतान की जिल्लत क्या होगी, ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता ये किसका लहू है कौन मरा. Santoshktn.blogger.com By ...

अंग्रेजों को बुरा क्यों कहते हो साहेब❓

नासमझ लोग अंग्रेजों को बहुत गलत बताते हैं और अंग्रेजों को बहुत बुरा भला कहते हैं। लेकिन *obc* समाज में जन्मे *महान क्रन्तिकारी समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फूले* ने कहा था कि *अंग्रेज शूद्र/अतिशूद्र के लिए भगवान बनकर आये है.* अर्थात sc/st/obc/minority के *असली दुश्मन* अंग्रेज नहीं *ब्राह्मण हैं* जिन्होंने इनको शिक्षा सत्ता सम्पत्ति सम्मान से दूर रखकर *हजारो साल से शोषण किया है |* अतः शुद्रो को ब्राह्मणों की धार्मिक गुलामी से मुक्ति चाहिए तो *ब्राह्मणों द्वारा थोपे गए मान्यता परम्परा और संस्कारो को नकारना होगा ।* मैं कुछ जानकारी देना चाहता हूं जरूर पढें कि *अंग्रेजों ने कितने पाखंडों पर रोक लगाने में कामयाबी पायी...* इसे पढें - १) *रथयात्रा* :- जगन्नाथ में हर तीसरेवर्ष यह यात्रा निकाली जाती है जिसमें स्वर्ग पाने के चक्कर में रथ के पहिये के नीचे आकर सैकडों लोगों की जान चली जाती थी, कानून बनाकर बंद की । २) *काशीकरबट* :- काशी धाम में ईश्वर प्राप्ति हेतु विश्वेश्वर के मंदिर के पास कुए में कूद कर जान देते थे बंद कराई गयी । ३) *चरक पूजा* :- काली के मोक्षाभिलाषी उपासक की रीड की हड्...

बाग़ी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे

इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का, कोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का।। एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है, अब तो भूखे पेटों का बागी होना मजबूरी है।। जागो कलम पुरोधा जागो मौसम का मजमून लिखो, चम्बल की बागी बंदूकों को ही अब कानून लिखो।। हर मजहब के लम्बे-लम्बे खून सने नाखून लिखो, गलियाँ- गलियाँ बस्ती-बस्ती धुआं-गोलियां खून लिखो।। हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में, हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में।। हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं, डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं।। जब तक भोली जनता के अधरों पर डर के ताले हैं, तब तक बनकर पांचजन्य हम हर दिन अलख जगायें।। गेबागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे, अगवानी हर परिवर्तन की भेंट चढ़ी बदनामी की, परिवर्तन की पतवारों से केवल एक निवेदन था।। भूखी मानवता को रोटी देने का आवेदन था, अब भी रोज कहर के बादल फटते हैं झोपड़ियों पर।। कोई संसद बहस नहीं करती भूखी अंतड़ियों पर, अब भी महलों के पहरे हैं पगडण्डी की साँसों पर।। शोक...

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