संयुक्त राष्ट्र संघ का संदेश है कि समाज को बांटने पर केंद्रित नफरत संबंधी बयानों और हिंसक संघर्षों के वर्तमान दौर में बुद्ध की शिक्षा करुणा और अहिंसा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बड़ी चुनौतियों से निबटने में मदद करती है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि भगवान बुद्ध की शिक्षा का प्रबल आधार 'विवेक" है जिससे अपने परिवार के साथ समाज को जोड़ने का सौभाग्य मिलता है यह सामूहिक जीवनपार्जन नीति है,।अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय चुनौतियों को निबटने में बुद्ध की शिक्षा जितनी प्राचीन काल में प्रासंगीक थी, आज भी उत-निहि प्रासंगिक है। बुद्ध कि शिक्षा सभी जीवों के लिए प्यार और करुणा का पाठ पढ़ाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने संदेश में आगे यह भी कहा है कि समस्याओं का समाधान "बौद्ध विवेक एक प्रबल स्त्रोत है" जो 'आंतरराष्ट्रीय वैशाख बुद्ध पूर्णिमा दिवस' है और यह दिवस सभी लोगों के प्रति करूणा अपनाने की याद दिलाता है जिसमें विभिन्न वर्गो में कट्टरता अस्वीकार करके सभी लोगों को समान रूप से गले लगाना शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में विशेष तौर पर बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है जिसमें बौद्ध भिक्षु और राजनयिक शामिल होते है। बुद्ध जयंती अर्थात बुद्ध पूर्णिमा जीसका सिधा संबंध वैशाख पूर्णिमा से है जो सीधे मानव जगत से सम्बन्ध है। यह पर्व विश्व के हर कोने हर्ष उल्लास से मनाया जानें वाला पर्व है। भगवान बुद्ध के जन्म , सम्यक संबोधी तथा महापरिनिर्वाण का यह पर्व है। विश्व के अनेक भागों में फैले हुए बुद्ध अनुयायि 'वैशाख पूर्णिमा' के नाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का यह पावन पर्व भारत, चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया, नेपाल, सिंगापुर, विएतनाम, थाईलैंड, लाओस, कम्बोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, श्रीलंका, ताइवान, हांगकांग, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, रूस, तुर्किस्तान, मंगोलिया बांग्लादेश आदि देश सदियों से मनाते है। विश्व के इतनी बड़ी संख्या के देशों में यह पर्व मनाया जाना इससे यह ज्ञात होता है कि भारत के विश्व गुरू का ऐश्वर्य आज भी विश्व में यथावत है। बल देकर कहना चाहूंगा कि इन देशों का राजनैतिक नेतृत्व और सामरिकता जो भी हो, किन्तु वहां कि जनता बुद्ध की भूमि कि कृज्ञता को चिरविस्मृरत आदर को कभी भुलते नहीं। यही वह तथ्य है जो भारत को विश्वगुरु के स्थान पर विराजित करता है।
इन देशों में हजारों की संख्या में बौद्ध सांस्कृतिक सभ्यता की शिक्षा के धार्मिक स्मारक, विहार, बौद्ध साहित्य, संस्थान, शिलालेख, खगोलीय अनुसंधान केंद्र, व्याकरण सिद्धांत, गणितीय सिद्धांत, विशाल स्थापत्य कला निर्माण आदि ऐसे अक्षुण्ण श्रद्धा केंद्र हैं जो यहाँ भारत का नाम श्रद्धापूर्वक लेते रहते हैं। पिछले 2600 साल से बौद्ध विचार प्रवाह ने मानव जगत को विवेकता की चिरविस्मृत शिखरावाली के अंतिम बिंदु तक पहुचाया है। जिससे उनके सामाजिक आर्थिक जिवन मूल्य दुनिया में सबसे बेहतरीन माने जाते है। बौद्ध समुदाय संयुक्त रूप से विश्व के दुसरे सबसे बड़े समुदाय के रूप में स्थापित हैं। सयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के प्रथम पांच विशाल धार्मिक संस्थापको में मात्र बुद्ध के जन्म, सम्यक सम्बोधि और महापरिनिर्वाण के वैशाख पूर्णिमा दिवस को मान्यता दी है यह भारत का गौरव है। भारतीय मूल के बौद्ध समुदाय को एक आंतराष्ट्रीय समुदाय के रूप में डर0 बाबासाहाब आम्बेडकर गौरव प्रदान कर चुके हैं । यह वैभव ब्राम्हण-वर्णो के चार वर्ण, मुलनिवासी, बहुजन, दलित, आम्बेडकरी समाज को कभी मिला नही और आगे यह वैभव मिलने वाला नही है। डॉ0 बाबासाहाब आम्बेडकर द्वारा दिया गए इस वैभव से यह ज्ञात होता है कि विश्व में बुद्ध का पथ आज भी मानव जगत के सामाजिक-आर्थिक मूल्यों को हर्ष-उल्हासित करता हैं।
बुद्ध की विश्वगुरु की पृष्ठभूमि और इतिहास को संयुक्त राष्ट्र संघ कि मान्यता यह वैश्विक बौद्ध सांस्कृतिक धम्म पीठ का ही परिणाम है। विभिन्न जगत की प्रसिद्द शैक्षणिक संस्थानों के विषय में भी यही तथ्य शत प्रतिशत पुनरावृत्त होतें हैं। आज भारत वैश्विक राजनीति में अपनी भूमिका को बुद्ध विचार प्रवाह से तराश रहा है और भारत में विश्वगुरु के वैभव को तिलांजली देकर मात्र ब्राम्हणवाद के काल्पनिक पाखंड को फैलाने में लगा है। बुद्ध का आर्य अष्टांलगीक मार्ग से समूचे यूरोपीय देशों नें अपनें विचार प्रवाह को विस्तारीत किया है, यह बुद्ध के शिक्षा का सार है और यही सम्राट अशोक का संदेश है और इसे सम्राट अशोक ने साधुवाद कहा है। बुद्ध के मूल सिद्धांतों पर विचार करें हुए स्वाभाविक ही प्रतीत होता है कि वैश्विक स्तर पर हम किस प्रकार पीठाधीश की भूमिका में हैं। आज सम्पूर्ण विश्व में अनेकों राष्ट्र जिस आर्य आर्यष्टांगिक मार्ग पर चल रहें हैं वे उस बौद्ध सिद्धांत की वैज्ञानिकता से भारतीयों को वैज्ञानितकता की दृष्टि विकसित करने की प्रेरणा देते है।
सयुक्त राष्ट्र संघ वैशाख बुद्ध पूर्णिमा पर्व-2561 के दिवस पर उस दिप्त युग पुरूष को डा0 बाबाहाब आंबेडकर को कोट कोटी नमन करता हूँ जिन्होनें भारतीय संविधान के तहत भारतीय होनें का एक अद्विवितीय गौरव भारतीयों को दिया है। किन्तु दुःख भी होता है जबसे भारतीय संविधान अमल में आया तबसे भारतवासियों को विश्व भर में उनके विस्तारित भारतीय होने के श्रद्धा भाव को तिलांजलि देकर उन्हें ब्राम्हणवाद कि जाति व्यवस्था में कुचला जा रहा है, घोर काल्पनिक पाखंड कि कृतियों में उन्हें मानसिक पताड़ना झेकनी पड़ती हैं। भारतीय जीवन के प्रारम्भ से लेकर अंतिम सांस तक समाहित बुद्ध की शिक्षा को अनुकरण करने बजाय हाशिये पर धकेला जा रहा है और दुनिया बौद्ध जीवन शैली और सांस्कृतिक सभ्यता को समेटें हुए हैं जो आगामी कई हजार वर्षों की अति विकसित होनें वाली जीवन शैली है और अधिक से अधिक प्रभावी, प्रासंगिक और प्रदीप्त है। शील, समाधि, और प्रज्ञा आधारित बुद्ध कि शिक्षा भव-संसार से मुक्त करके अरहंत का भाव समूचे विश्व को देती है। यह शिक्षा ब्रह्माण्ड को सकारात्मक उपयोग कर लेनें का विचार और क्षमता दोनों भी प्रदान करती हैं। हर समय में संवेदनशील, सटीक और समर्थ जीवन शैली को जन्म देनें वाले बौद्ध सिद्धांत और संस्कार हमें विश्व नेतृत्व की अद्भुत क्षमता प्रदान करतें हैं।
Santoshktn.blogger.com By SK BHARTI
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